सोमवार, 14 जनवरी 2013

तुम कभी मत लौटना दामिनी



ना .....मुझे इस तरह ना देखो दामिनी
बेशक मै इक्कीसवी सदी हूँ
लेकिन आज अपने आप से शर्मसार
अपने समूचे कालखण्ड की खातिर
चुल्लूभर पानी तलाशती इक्कीसवीं सदी .........

कैसे कहूँ कि
आज भी कानो में जस की तस
गूँज रही है
तुम्हारी लाचार और बेबस चीखें
... आज भी मेरे सामने है तुम्हारी निष्प्राण देह
शिला में तब्दील, अहिल्या की मानिंद
अरबों खरबों की भीड़ में,
एक अदद श्रीराम को तलाशती .............

कालचक्र की धुरी पर अनवरत
घूमते  हुए देखती रही हूँ, दामिनी
युग बदले, बदली सभ्यताए भी ,
लेकिन नहीं बदला।--- तो बस
सुनामी तूफानों के हैवानीयत का कहर,
धरती की कोख से पैदा होकर भी
धरती की छाती पर
धरती के विध्वंस की शोर्य गाथाये उकेरते
सुनामी का कहर ...........
नहीं बदला ...आकाश का निशब्द रुदन भी ....
.....
तुम जहाँ हो वहां मिले कही तो देखना
कोई राम, कृष्ण, गौतम
पूछना उनसे
किन्ही नपुंसक पराक्रमो को
उसी वक्त
नेस्तनाबूद कर देने का सामर्थ्य
उनके देवत्व या तपस्या में नहीं रहा क्या?
कह देना दामिनी
कि  जिन्हें मारकर अमरत्व पाया उन्होंने,
उनके वंशज आज भी जिन्दा है

माफ़ करना दामिनी
मै नहीं दे पाऊँगी तुम्हे
देवी दुर्गा या आदिशक्ति जैसे
कोई भ्रामक संबोधन
जानती हूँ
शक्तिया हर युग में शैतानो के हाथ रही है
और देवियाँ!!!!!...... सहनशक्ति की पराकाष्ठा


बस प्रार्थना यही ,कि तुम जहाँ हो,
वहीँ रहना दामिनी .........कभी मत लौटना,
याद रहे
यहाँ तूफानों के कहर को रोकने की नहीं
धरती को बचाए रखने की
मुहीम जारी ;है .........
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