रविवार, 16 सितंबर 2012

Kunda Joglekar
• एक अजन्मी बेटी की अपनी माँ से गुहार .....

   जीने दो मुझे 

सुनो सृजन की देवी सुनो.....
अपनी समूची एकाग्रता के साथ 
अपने भीतर से आती चीख सुनो, 
ये चीख मेरी है ,
मै---हाँ मै --तुम्हारी अजन्मी बेटी ----
सुनो माँ.. मै लेना चाहती हूँ जन्म 
देखना चाहती हूँ सदी का सूरज,
देख लेने दो मुझे,
माँ हो तुम , बेटी हूँ तुम्हारी, ---जीने दो मुझे,---------

सुनो माँ... लेना चाहती हु जन्म ,
खेलना चाहती हूँ, अंधेरो,उजालों, रोशनियों के साथ
लेना चाहती हूँ,
सुगन्धित खुली हवा मे, जीवन की साँस
नापना चाहती हूँ,
,घुटनों घुटनों घर आँगन ,
और योवन के पंखों पर सारा आकाश,
अपनी बड़ी सी दुनिया में,
नन्हे से कदम रख लेने दो मुझे,
माँ हो तुम, बेटी हूँ तुम्हारी, जीने दो मुझे............
.
मै लेना चाहती हूँ जन्म,
ये जानते हुए भी,
कि रहूंगी परायाधन सी पोषित ताउम्र ,
और कर दी जाउंगी दान एक दिन,,
नहीं बन पाऊँगी जन्मदाताओं के लिए
मोक्ष की परिभाषा,
जानती हूँ , मुक्तिदाता बेटा नहीं हूँ मै
लेकिन सपना तो हूँ न माँ
तुम्हारी आँखों मै झिलमिलाता ,
एक एहसास तो हूँ न... तुम्हारी कोख मै पलता,
गर महसूस कर सको,
तो फैलाती हूँ बाँहे, मांगती हूँ जीवन,
अभयदान दो मुझे ,
माँ हो तुम बेटी हूँ तुम्हारी जीने दो मुझे ...........
मत साधो माँ,
मेरे अस्तित्व के प्रश्न पर इतना बेबस मौन,
बढ़ जाती है, मेरे दिल की धड़कन,
तैर जाते है दृष्टि के आगे
सृष्टि के ध्वस्त होते खँडहर,
और घूमने लगता है समूचा ब्रम्हांड ,
एक पृष्ठ नहीं, सम्पूर्ण अध्याय हूँ,
मत भुलाओ मुझे,
माँ हो तुम, बेटी हूँ तुम्हारी, जीने दो मुझे ........
सच कहना माँ, क्या बदल पाए ,
सदियों के अंतराल या
पीढियों के मायाजाल ?
सब कुछ जस का तस तो है,
आज भी खून के आंसू रुलाते है ,
बेटे बेटी के भेद,
छलनी छलनी कर जाती है
,प्रगति की वो किरणे और
आधुनिकता ओढ़े ये मुखौटे,
आज भी हाथ मलती रह जाती है हथेली की रेखाएं और कराहती है शताब्दियाँ 


आज भी एक बेटे की ख्वाहिश ,,
हजारो बार सूली पर चढ़ा देती है मुझे
और कोई कुछ नहीं बोलता
मौन साध लेते है युगांतर के नगाड़े,
अंधा हो जाता है समाज और ,
गूंगी बहरी हो जाती है, समूची सभ्यता ,
माँ हो न, ख़त्म करो
अजन्मी बेटियों को
कोख मे मारने का तांडव,
और जीने का हक़ दो मुझे,
माँ हो तुम, बेटी हूँ तुम्हारी, जीने दो मुझे ..........
सिर्फ बेटी नहीं हू माँ , युगास्रुश्ठा हूँ तुम्हारी तरह
तुम्हारे ही संस्कारों की वंशज हूँ,
सीता हूँ, सावित्री हूँ, दुर्गावती हूँ मै, झाँसी की रानी हूँ,
बड़े होने का मौका तो दो मुझे..
माँ हो तुम, बेटी हूँ तुम्हारी, जीने दो मुझे..........
मै आउंगी अपना नसीब लेकर ,
हाथों पर अपनी भाग्य रेखाए,
सीख लूंगी उड़ना,आसमान से ऊपर,
तैर जाउंगी सात समंदर पार,
सीख लूंगी, दौड़ना भागना खुद ब खुद ,
और निकल कर दिखाउंगी,
तुम्हारे हर बेटे से आगे,
बस कुछ दिन माँ, तुम लोरी गाकर सुलाना
फिर अंगुली पकड़ कर, पैयाँ पैयाँ सिखा देना मुझे,
माँ हो तुम, बेटी हूँ तुम्हारी, जीने दो मुझे ......
एक पृष्ठ नहीं, सम्पूर्ण अध्याय हूँ
गुजरे हुए कल का इतिहास
और आने वाली सदियों की अमानत हूँ ,
तुम जिसे मानती हो न माँ,
उस सर्वेश्वर की पूजा हूँ ,
वाहे गुरु का सन्देश हूँ ,
प्रभु इशु की प्रार्थना और खुदा की इबादत हूँ
ख़ुशी ख़ुशी स्वीकारो मुझे ,
माँ हो तुम बेटी हूँ तुम्हारी........
मत मारो मुझे.....मत मारो मुझे......मत मारो ......

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